सारे विश्व में आत्मरक्षा व बचाव के लिए अनेक प्रकार की मार्शल आर्ट्स प्रचलित है। किसी देश में किसी कला को महत्व दिया जाता है और किसी देश में किसी और कला को अधिक महत्व दिया जाता है। मार्शल आर्ट्स का जन्म कब कहाँ कैसे हुआ ये कहना कठिन है। कई लोगों का मानना है कि भगवान बुद्ध ने बौद्ध धरम के प्रचार के लिए जब अपने शिष्यों को दूसरे देशों में भेजा तो शत्रुओं से अपनी रक्षा करने की यह अहिंशा पूर्ण कला जिसमें हथियारों का कोई प्रयोग नहीं होता बल्कि वह अपने शरीर को हथियार के रूप में प्रयोग कर के अपनी रक्षा करना सिखाया था। उनके शिष्यों ने आगे चल कर बौद्ध धरम के प्रचार के साथ साथ इस कला को भी प्रचलित और विकसित किया।

मार्शल आर्ट्स के अलग अलग रूप।

आईये हम आप को आज के समय में प्रचलित कुछ मार्शल आर्ट्स की कलाओं के बारे में जानकारी देते हैं।

कराटे

कराटे तीन भागों में बटा है -:

  • किहन (स्टान्स,ब्लॉक ,पंच,किक मारना)
  • काता  (युद्ध मैं आने वाली परिस्थितियों का पूर्व अभ्यास)
  • कुमिते (फाइटिंग)

कराटे के हर भाग के शुरुआती दौर में बेसिक तकनीक को तब तक सिखाया जाता है जब तक की वह सिखने वाले के लिए आसान न हो जाये जैसे जैसे छात्र अच्छे से सिखने लगता है वह शारीरिक रूप से और मजबूत होता जाता है जिससे आगे आने वाले कठिन काता और कुमिते करने में सक्षम हो जाता है जैसे जैसे छात्र ब्लैक बेल्ट के स्तर तक पहुँचता है मजबूत अभ्यास के चलते वह तकनीक सहनशक्ति और गति में सक्षम हो जाता है और इस स्तर पर पहुँच कर ही गंभीर छात्र को पता चल जाता है कि मेरा अभ्यास तो अभी शुरू ही हुआ है। कराटे अभ्यास का असली उद्देश्य अपने आप को पूर्ण करना है। ज्यादा तर लोग कराटे को एक युद्ध कला के रूप में जानते हैं लेकिन यह एक बचाव की कला भी है यह एक ऐसी कला है जिससे की न केवल हम अपना बचाव कर सकते हैं बल्कि दूसरों का भी बचाव बिना हथियार के कर सकते हैं क्योंकि कराटे का पूरा मतलब ही खाली हाथ से अपनी आत्मरक्षा करना। कराटे एक ऐसी कला है जिसका मतलब खाली हाथ अपना बचाव करना है कराटे को तीन भागो में बांटा गया है. शुरूआती दौर में सिखने वाले व्यक्ति को पहले तो मस्तिष्क और शारीरिक दोनों तरह के व्यायाम करवाए जाते हैं. जिससे शरीर और मस्तिष्क दोनों में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है और दोनों मजबूत होते हैं. इसको करने से न केवल शरीर मजबूत होता है बल्कि कराटे करने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व और निखर जाता है, वह आत्मविशवासी होता है, वह कैसे भी हालात हो उनसे डरता नहीं है उनका डट कर मुकाबला करता है उसका मस्तिष्क इतना तेज हो जाता है कि वह कम समय में उचित फैंसले ले पाता है. वह अपने साथ साथ दूसरों की भी रक्षा कर सकता है

बच्चों के लिए कराटे

छोटे बच्चों को भी कराटे सिखने से कई लाभ मिलते हैं उन्हें व्यायाम की आदत पड़ जाती है. उनकी ऊर्जा सही दिशा में उपयोग होती है उनमें स्टेमिना बढ़ता है, मस्तिष्क तेज होता है भूख लगती है और शारीरिक विकास भी समय समय पर पूर्ण रूप से होता रहता है कराटे करने के लिए कोई उम्र तय नहीं है 4 साल के बच्चे से लेकर किसी भी उम्र का व्यक्ति कर सकता है। आज कल के बदलते खान पान के कारण शरीर में कई प्रकार की बीमारियां लग जाती है और मोटापा बढ़ जाता है लेकिन कराटे करने से आप शरीर की कई बिमारियों से दूर रह सकते हैं और मोटेपे का खतरा भी नहीं रहता।

लड़कियों के लिए कराटे

लड़कियों के लिए कराटे बहुत ही जरुरी है क्योंकि की आज कल लड़कियां अपने आप को बाहर ही नहीं बल्कि घर में भी सुरक्षित महसूस नहीं करती इसलिए उन्हें अपने आत्मसम्मान को बचाने के लिए बचाव की ये कला सीखना और भी जरुरी हो गया है

लड़कों के लिए कराटे

लड़कों को भी कई कारणों से घर से बाहर दूसरे शहरों में रहना पड़ता है और कई परिस्थितियों का सामना अकेले ही करना पड़ता है कई बार वह अपना आत्मविशवास खो देतें हैं लेकिन कराटे से उनको भी बहुत फायदा मिलता है मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूती मिलती है, अत्मविस्वाश मिलता है और वह हर प्रकार की परिस्थितियों का सामना करने में अनुकूल होते हैं.वह अपनी और अपने परिवार की रक्षा करने में, निर्णय लेने में और ज़िंदगी से जुड़े और भी कई फैसले लेने में सक्षम होते है जू – जित्सू कला का जन्म जापान में हुआ बिना हथियार के होने पर आक्रमण से स्वयं को बचाने की कला को जू -जित्सू कहते हैं। जापान में इसे वर्षों से खेल के रूप में अपनाया गया हैं। इस कला में शारीरिक शक्ति के स्थान पर शरीर के घुमाव या लचीलेपन का महत्व होता है। जू -जित्सू की कला ताकतवर मांसपेशियों या तंदुरुस्त शरीर की कोई प्रतियोगिता नहीं है, वरन आत्मरक्षा की ही कला है। जू जित्सू की कला सिखने के लिए रूई या फोम के नरम गद्दों का प्रयोग करना चाहिए अथवा खुले स्थान पर, जहाँ मिटटी खोद कर नरम कर दी गयी हो, इस कला का अभ्यास करना चाहिए। जू -जित्सु सिखने के लिए व्यक्ति का शरीर व दिमाग चुस्त तथा उनमें तुरंत सोचने व् निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए। यहाँ विशेष रूप से ध्यान देने की बात यह है कि इसमें व्यक्ति की शारीरिक शक्ति का उतना महत्व नहीं होता जितना कि शरीर की तेजी, लचीलेपन व गति का होता है। जू -जित्सू की दो विधियां है, एक तो बिना हथियार प्रतिद्धंदी का सामना करना और दूसरी हिथयार वाले प्रतिद्धदी पर हावी होना।

जुडो

जापानी युद्ध व् बचाव की कला को जू -जित्सू कहा जाता है। जू -जित्सू का विकसित रूप जुडो है इसके विकास में डॉ कैनो जिगोरो का नाम अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह एक प्रसिद्ध शिक्षाविद थे बचपन में बहुत कमजोर तथा दुबले पतले होने के कारण यह अपने स्कूल के किसी व्यायाम अथवा खेल में हिस्सा नहीं लेते थे। युवा होने पर जब इनका ध्यान अपने स्वास्थय सुधार की और गया तो इन्होने अपनी ताकत तथा स्वास्थय के विकास के लिए जू -जित्सू सीखना शुरू कर दिया कुछ समय के नियमित अभ्यास से उनका स्वास्थय सुधर गया तथा यह स्वंय को शक्तिशाली भी महसूस करने लगे। धीरे धीरे जू -जित्सू की कला में इन्होने ने कुछ तकनिकी सुधार किये और इसे खेल के रूप में विकसित किया। इन्होने ने इस कला को नया नाम दिया – “जुडो ” . जू -जित्सू में जहाँ दुसमन से मुकाबला करने के लिए शारीरिक बल का प्रयोग अधिक होता था वहीँ जुडो में तकनीक व् कौशल पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा। अनेक स्कूलों तथा कॉलेजों में जू -जित्सू व् जुडो में तुलनात्मक अध्ययन किया गया और अंत में जुडो को उत्तम कला माना गया। भारत में भी आज अनेकों स्कूलों में जुडो का प्रशिक्षण दिया जाता है। अनेक देशों में स्कूल कॉलेज, विष्वविधालयों के अतिरिक्त पुलिस और होम गॉर्ड को भी इसका प्रशिक्षण दिया जाता है भारत में जुडो लाने का श्रेय महा कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर को जाता है जिन्होंने 1929 में जापान के जुडो प्रशिक्षक, थाकागाकी को जापान से भारत बुलाया और शांति निकेतन में जुडो की शुरुआत करवाई।

कुंग फू

का जन्म कहाँ और कैसे हुआ यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कुछ लोग मानते हैं कि 2000 वर्ष पूर्व इसका जन्म चीन में हुआ था जबकि कुछ लोगों का मानना है की कुंग फू की तकनीक का जन्म भारत में योद्धाओं के बीच हुआ। कुंग फू दूसरे पर आक्रमण, मजबूत पकड़ व् फेंक की कला का नाम है। कहते हैं कि 520 ई० पूर्व में बोधिधर्मन नाम का एक भिक्षु चीन गया। उसने वहां के भिक्षुओं को योग की कला सिखाई जिससे दिमाग और शरीर पर नियंत्रण रखा जा सके। चीन के भिक्षुओं ने बोधिधर्मन और अपनी लड़ाई की कला को मिश्रित कर के शाओलिन कुंग फू का नाम दिया 1372 में कुछ चीनी भिक्षुओं ने पैसिफिक आईलेंड के ओकिनावा की यात्रा की और वहां के लोगो को कुंग फू सिखाया। वहां के लोगों ने अपनी युद्ध कला टोड को कुंगफू में मिश्रित कर दिया। इसे ओकिनावांते का नाम दिया गया बाद में यही कला विकसित होकर कराते बन गयी जिसे अंग्रेजी में कराटे कहा गया। ओकिनावांते के ते का अर्थ है हाथ।

निन्जुत्सु

पिछले कुछ वर्षो में निन्जा योद्धाओं की एक अलग ही छवि निखर कर सामने आयी है।  निन्जा योद्धा वैसे ही बहुत खरतरनाक समझे जाते है। उन्हें मार्शल आर्ट्स के इतिहास में सबसे घातक युद्ध मशीन समझा जाता है उनमें युद्ध तकनीक व् निडरता की अनोखी भावना होती है निन्जुत्सु की कला अपनाने वालों को निन्जा कहा जाता है। सन 593 के लगभग जब जापान में धार्मिक व् राजनैतिक उथल पुथल हुई थी, तब इसका जनम हुआ, ऐसा माना जाता है काले कपड़ों के पीछे छिपी मानव आकृतियों ने 1000 वर्ष तक जापान में डर और खौफ का माहौल बनाये रखा निन्जा योद्धा अपने साथ खतरनाक हथियार भी रखते थे, जैसे पेड़, किले आदि पर चढ़ने के लिए विशेष प्रकार के कांटे और उपकरण तथा हाथों में पहनने के लिए कुछ नुकीले पंजे, तलवार आदि। निन्जुत्सु में 5 भिन्न दृष्टिकोण अपनाये जाते हैं प्रत्येक को उँगलियों के विशेष चिन्हों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है इन चिन्हों का अर्थ जमीन, पानी, आग व् हवा होता है निश्चित चिन्ह व् दृष्टिकोण अपना कर एक निन्जा योद्धा निश्चित समय पर सही दिमाग व् तकनीक का प्रयोग कर सकता है। आज पश्चिमी देशों व् जापानी छात्रों में बिना हथियार की जो कला अपनायी जाती है, उसे ताईजुत्सु अर्थात शरीर की कुशलता कहा जाता है।

थाई बॉक्सिंग

थाई बॉक्सिंग अन्य सभी मार्शल आर्ट्स से अलग कठिन खेल व् विद्धा है इसमें किये गए तीव्र प्रहार व्यक्ति को बचाव के वक्त परेशानी में डाल सकते हैं घुटने के प्रयोग द्वारा किया गया बचाव व् आकर्मण इसमें बहुत महत्वपूर्ण होता है इसमें शरीर के अन्य अंगो के स्थान पर मुटठी  का प्रयोग होता है।

हैपकिड़ो

जैसा की पहले ही कहा जा चुका है मार्शल आर्ट्स की विभिन्न विधाओं का अलग अलग देशों में अपनी विशेषताओं को लिए हुए हुआ है। कोरिया में मार्शल आर्ट्स की जिन विधाओं का जनम और विकास हुआ, उनमें से प्रमुख है हैपकिड़ो और ताइक्वांडो। हैपकिड़ो केवल आत्मरक्षा के लिए है। यह कला अहिंसा के सिद्धांत को महत्व देती है, सवयं के बचाव के समय भी अहिंसा  का पाठ पढ़ाती है।

तायक्वांडो

कोरियाई भाषा में ”ताय ” शब्द का अर्थ है पैर से कुचलना या किक मारना, ”क्वोन” शब्द का अर्थ हैं हाथों से मारना या नष्ट करना, और ”डो ” शब्द का अर्थ है तरीका। अतः ताइक्वांडो का पूर्ण शाब्दिक अर्थ हुआ – हाथों व् पैरों के तरीके से किसी को मारना। ताइक्वांडो की कला कोरिया की प्राचीन बिना हथियार की कला से विकसित युद्ध कला है। इसका मुख्य तरीका यहाँ के प्राचीन ग्रामीण तरीके ”ताइक्वॉन” से लिया गया है जो कोरिया में 2000 वर्ष पूर्व एक क्षेत्रीय विद्धा थी।